ये ग़ज़ल मोहब्बतों की

मैं किसे सुना रहा हूँ ये ग़ज़ल मोहब्बतों की,
कहीं आग साजिशों की कहीं आँच नफरतों की,
कोई बाग जल रहा है ये मगर मेरी दुआ है,
मेरे फूल तक न पहुँचे ये हवा तज़ामतों की।

तू एक लकीर है जो मेरे हाथ में नहीं

तेरे सिवा कोई मेरे जज़्बात में नहीं,
आँखों में वो नमी है जो बरसात में नहीं,
पाने की कोशिश तुझे बहुत की मगर,
तू एक लकीर है जो मेरे हाथ में नहीं।

हर सांस पर बस नाम तेरा…

साकी पिला रहा है और मैं पिए जा रहा हूँ,
हर सांस पर बस नाम तेरा लिए जा रहा हूँ ,
ख्वाइश तो मरने की है फिर भी जिए जा रहा हूँ,
जो आगाज़ तुम ने किया था मेरी बर्बादिओं का मैं उन्हें अंजाम दिए जा रहा हूँ.

क्यों मरते हो बेवफा सनम के लिए…

क्यों मरते हो बेवफा सनम के लिए,
दो गज जमीन नही मिलेगी दफन के लिए,
मरना हे तो मरो देश-ए-वतन के लिए,
हसीना भी दुपट्टा उतार देगी कफ़न के लिए..