मैं किसे सुना रहा हूँ ये ग़ज़ल मोहब्बतों की,
कहीं आग साजिशों की कहीं आँच नफरतों की,
कोई बाग जल रहा है ये मगर मेरी दुआ है,
मेरे फूल तक न पहुँचे ये हवा तज़ामतों की।
साकी पिला रहा है और मैं पिए जा रहा हूँ, हर सांस पर बस नाम तेरा लिए जा रहा हूँ , ख्वाइश तो मरने की है फिर भी जिए जा रहा हूँ, जो आगाज़ तुम ने किया था मेरी बर्बादिओं का मैं उन्हें अंजाम दिए जा रहा हूँ.